पिछली बार हमने बात की छोटी टीमों के विश्वकप में खेलने के औचित्य पर उठ रहे प्रश्न की,इस बीच कुछ और निराशाजनक ऊबाउ मैच खेले गए और लगने लगा कि वाकई प्रतियोगिता अनावश्यक लंबी खिंच रही है,एक बात और गौर करने वाली रही कि कोई भी टीम कितनी भी अच्छी गेंदबाज़ी और क्षेत्ररक्षण क्यों न कर ले रनों का आँकङा 250 के पार पहुँच ही जाता है,कुल मिलाकर खेल को मनोरंजक बनाने के फेर में गेंदबाज़ों का प्रदर्शन महज़ खानापूर्ति रह गया है,किंतु अनिश्चितता और रोमांच ही जिस खेल की पहचान हो उसमें भला किसी एक मत पर कैसे अडिग रहा जा सकता है,पिछले दो दिनों में देखने को मिले छोटे स्कोर वाले मैच,जिनमें से एक पर तो बंग्लादेश ने 206 रन के लक्ष्य पर ही किला लङा दिया और फतह हासिल कर ली,वहीं छोटी टीमों के निराशाजनक प्रदर्शन का भी भ्रम टूटा,केन्या को बुरी तरह हराकर 7+ का नेट रन रेट हासिल करने वाली न्यूज़ीलैंड अपने पङोसी ऑस्ट्रेलिया के आगे सस्ते में धराशायी हो गयी, और वेस्टइंडीज़ ने भी नौसिखियों की तरह खेल दिखाया,जहाँ एक ओर खेल को रोचक बनाने की कवायद चल रही है तो वहीं बङी टीमों का ऐसा लचर प्रदर्शन खेल मे सिर्फ पाँच ही प्रतिस्पर्धियों का गणित बना रहा है:भारत,दक्षिण अफ्रीका,श्रीलंका,पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया,पाकिस्तान को इस लिस्ट में देख आप भले ही चौंक जाएं ,किंतु विश्वसनीय Castrol Cricket Index तो इस बात की पुष्टि कर रहा है और अब तक के मैचों में आए परिणाम Castrol Cricket Index के आँकङो और गहन अध्ययन को और पुख्ता साबित कर रहे हैं, हाँ इंग्लैंड इस दौङ में था किंतु हर टीम नीदरलैंड नहीं होने वाली और पहले मैच वाला प्रदर्शन जारी रहा तो हो सकता है बंग्लादेश इंग्लैं को पराजित कर एक और इतिहास रच डाले।
एक बात जो स्पष्ट रुप से दिखाई दे रही है कि विदेशी टीमें भारत की परिस्थितियों का बहुत अच्छा अध्ययन करके आयी हैं और उसी के मुताबिक रणनीति बना रही हैं,दक्षिण अफ्रीका की तैयारियाँ बहुत मज़बूत लग रही हैं,इमरान ताहिर तुरुप का इक्का साबित हुए और धीमी पिच पर उम्दा प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया...