Saturday, February 26, 2011

एकदिवसीय=T-20=टेस्ट-ट्वेंटी

पिछली बार हमने बात की छोटी टीमों के विश्वकप में खेलने के औचित्य पर उठ रहे प्रश्न की,इस बीच कुछ और निराशाजनक ऊबाउ मैच खेले गए और लगने लगा कि वाकई प्रतियोगिता अनावश्यक लंबी खिंच रही है,एक बात और गौर करने वाली रही कि कोई भी टीम कितनी भी अच्छी गेंदबाज़ी और क्षेत्ररक्षण क्यों न कर ले रनों का आँकङा 250 के पार पहुँच ही जाता है,कुल मिलाकर खेल को मनोरंजक बनाने के फेर में गेंदबाज़ों का प्रदर्शन महज़ खानापूर्ति रह गया है,किंतु अनिश्चितता और रोमांच ही जिस खेल की पहचान हो उसमें भला किसी एक मत पर कैसे अडिग रहा जा सकता है,पिछले दो दिनों में देखने को मिले छोटे स्कोर वाले मैच,जिनमें से एक पर तो बंग्लादेश ने 206 रन के लक्ष्य पर ही किला लङा दिया और फतह हासिल कर ली,वहीं छोटी टीमों के निराशाजनक प्रदर्शन का भी भ्रम टूटा,केन्या को बुरी तरह हराकर 7+ का नेट रन रेट हासिल करने वाली न्यूज़ीलैंड अपने पङोसी ऑस्ट्रेलिया के आगे सस्ते में धराशायी हो गयी, और वेस्टइंडीज़ ने भी नौसिखियों की तरह खेल दिखाया,जहाँ एक ओर खेल को रोचक बनाने की कवायद चल रही है तो वहीं बङी टीमों का ऐसा लचर प्रदर्शन खेल मे सिर्फ पाँच ही प्रतिस्पर्धियों का गणित बना रहा है:भारत,दक्षिण अफ्रीका,श्रीलंका,पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया,पाकिस्तान को इस लिस्ट में देख आप भले ही चौंक जाएं ,किंतु विश्वसनीय Castrol Cricket Index तो इस बात की पुष्टि कर रहा है और अब तक के मैचों में आए परिणाम Castrol Cricket Index के आँकङो और गहन अध्ययन को और पुख्ता साबित कर रहे हैं, हाँ इंग्लैंड इस दौङ में था किंतु हर टीम नीदरलैंड नहीं होने वाली और पहले मैच वाला प्रदर्शन जारी रहा तो हो सकता है बंग्लादेश इंग्लैं को पराजित कर एक और इतिहास रच डाले।
एक बात जो स्पष्ट रुप से दिखाई दे रही है कि विदेशी टीमें भारत की परिस्थितियों का बहुत अच्छा अध्ययन करके आयी हैं और उसी के मुताबिक रणनीति बना रही हैं,दक्षिण अफ्रीका की तैयारियाँ बहुत मज़बूत लग रही हैं,इमरान ताहिर तुरुप का इक्का साबित हुए और धीमी पिच पर उम्दा प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया...

Wednesday, February 23, 2011

तिनका कबहुँ न निंदिये

 तो आखि़रकार विश्वकप का आगा़ज़ हो गया वो भी भारत की धमाकेदार विजय के साथ,और कोई मौका होता तो शायद इतने संशय न होते किंतु 2007 की पराजय ने अनेक आशंकाओं को जन्म दे दिया था, खैर विजय मिली और शानदार मिली,सेहवाग ने मैदान और मैदान के बाहर अपनी भङास निकाली और अपने बेधङक रवैये से सबका मुँह बंद कर दिया, खुल कर बोले कि हाँ ये पिछली हार का बदला था और बंग्लादेश टेस्ट क्रिकेट में अभी भी एक कमज़ोर टीम है,ढाका में खङे होकर ऐसी बेबाक बयानबाज़ी सेहवाग ही कर सकते हैं।
समांतर में चर्चा में है ICC के चेयरमैन हारुन लोगाट का बयान कि 2015 विश्वकप में मात्र दस टीमें ही खेलेंगी,और छोटी और कमज़ोर मानी जाने वाली टीमों में निराशा और रोष देखने को मिल रहा है,क्रिकेट जगत में आजकल अपनी ऊँटपटाँग टिप्पणियों के लिये चर्चा बटोरने वाले विश्वविजेता कप्तान रिकी पोंटिग ने हारुन के इस प्रस्ताव का समर्थन कर विवादों को और हवा दे दी है,पोंटिग का कहना है कि "माना कि छोटी टीमों को प्रोत्साहन मिलना चाहिये ताकि क्रिकेट का प्रचार-प्रसार हो किंतु विश्वकप इसके लिये सही मंच नहीं है,और पता नहीं बङी टीमों से बुरी तरह हारने पर ये टीमें कितना सीख पाती होंगीं" खैर पोंटिग तो ये बयान देकर अगले मैच की तैयारी मे जुट गये और विश्वकप के अपने पहले ही मैच में ज़िम्बाब्वे की कसी हुई गेंदबाज़ी और क्षेत्ररक्षण के आगे संघर्ष करते नज़र आऐ, हालांकि मैच तो वो जीत गए किंतु कङे मुकाबले के बाद।

Saturday, February 19, 2011

दही-शक्कर

बस कुछ घण्टे और फिर आगा़ज़ हो जायेगा एक और विश्वकप का,अभी-अभी विश्व कप 2003 के फाईनल की झलकियाँ देखीं,दूसरे चैनल मे समांतर में विश्व कप 2007 का वो अतिविस्मरणीय किंतु अविस्मरणीय मैच भी दिखाया जा रहा था जब क्रिकेट की महाशक्ति भारत एक बौने प्रतिद्वंदी बंग्लादेश से हार गयी थी,इस खेल की यही ख़ूबी है रोमांच! भावनाओं का,अनिश्चितता का,उत्साह का,निराशा का,नसों में नशा भरने वाला रोमांच!!! संप्रति से परे भूत और भविष्य मे पनपने वाला रोमांच,भूत जो सालता है,कचोटता है,मुठ्ठियाँ भिंच जाती हैं कि काश!!! ऑस्ट्रेलिया के साथ वो फाईनल,इतना पास पहुँच कर भी इतने दूर रह गये, पराजित सेना से मैदान में उतरे और बिना किसी चमत्कार के विश्व विजेता को नमस्कार कर कप पकङाकर चले आये,उफ्फ,काश...,जब कपिल जी ने जीता होगा वो कप क्या पता रहा होगा कि आने वाले 28 साल तक वही तस्वीरें मन को दिलासा देती रहेंगी,उससे बङे खिलाङी आये,बङी जीत मिलीं लेकिन वो एक कसक कि काश...खैर इसी काश की आस में फिर एक बार उतर रहे हैं मैदान में,फिरसे उम्मींदों का अंबार है,हमेशा कि तरह;फ़र्क इतना है कि इस बार आँकङे भी साथ दे रहे हैं,जीत की आदत के साथ,एक अलग आत्मविश्वास के साथ पादार्पण हो रहा है,फिर वही रोमांच आने वाले क्षणों का और बीत चुके पलों का साथ रह जायेगा ,और संप्रति में होंगी सिर्फ रिमोट कि किट-किट,सर दुखा देने वाले उत्पादों के प्रचार और कभी न सही होने वाले विश्लेषण,विजयी भव की आशा है और काश का भय किंतु फिर भी उम्मीद है कि भविष्य से बँधी और भूत की कर्ज़दार है।

Wednesday, February 16, 2011

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विश्व कप का बुखार बढ रहा है, अभ्यास मैच प्रारंभ हो गये हैं,भारत ने अपना पहला अभ्यास मैच चिर परिचित प्रतिद्वंदी ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध जीतकर अपनी दावेदारी को मज़बूत कर लिया है,हालांकि असली मुका़बला अभी तीन दिन बाद प्रारंभ होगा,आशा है अप्रैल तक और आने वाले कई अप्रैल तक जश्न जारी रहेगा।
प्रवीण कुमार के स्थान पर आये श्रीसंत ने अच्छा प्रदर्शन कर अपनी दावेदारी तो मज़बूत की ही,अति आदरणीय किंतु नकचढे पोंटिग को 'L' का संकेत देकर और वाद के बदले प्रतिवाद देकर यह भी जता दिया कि कुछ रोचक स्लेजिंग भी खेल को मज़ेदार बनाने वाली है, हालांकि स्लेजिंग का स्तर गिरता जा रहा है और अब यह वाक्पटुता न रहकर अभद्रता बन गयी है, किंतु कुछ अच्छे उदाहरण मिले तो खेल कि मर्यादा के साथ रोचकता भी बनी रह जायेगी,क्रिकेट के इतिहास में ऐसे कई मज़ेदार स्लेजिंग के उदाहरण हैं जो खिलाङियों कि हाज़िर-जवाबी के कारण किवंदती बन गये हैं,हालांकि बहुत सारे स्थानों पर इनका उल्लेख किया जा चुका है किंतु आईये एक बार फिर इन्हे स्मरण करके प्रसन्न हो लेते हैं,और आशा करते हैं कि विश्व कप -2011 में कुछ मज़ेदार और स्वस्थ्य स्लेजिंग देखने को मिले।

Saturday, February 12, 2011

थोथा चना बाजे घना-2

(INR)30 crore annual,2 crores monthly,60 lakhs weekly,12 lakh daily,50,000 per hour!! अरे ये किसी कंपनी की वार्षिक आय नहीं है,ये तो सचिन तेंदुलकर की आय के आँकङे हैं,वैसे कुछ और भी चौंकाने वाले आँकङे हैं जैसे गोल्फ खिलाङी टाईगर वुड्स के 13.44 crore/day या फुटबॉल खिलाङी क्रिस्टियानो रोनाल्डो के 65 lakh/day !! सुना है धोनी भी सचिन से बहुत पीछे नहीं रह गये हैं,कोई दो राय नहीं कि इतना मूल्य पाने के लिये खिलाङियों को खा़सा परिश्रम भी करना पङता है,पर फिर भी पैसा पानी की तरह बह रहा है।
पिछले अंक में हम बात कर रहे थे कि किस तरह पिछले विश्व कप से अब तक विज्ञापनों में अभूतपूर्व परिवर्तन आये हैं,सबसे आसान उदाहरण है टेलीविज़न के पर्दे का प्रयोग,याद कीजिये कैसे ऊपर एक कोने में छोटा सा स्कोर दिखायी देता था, फिर आया पर्दे के नीचे के हिस्से में विज्ञापनों का चलन,फिर दाँया भाग गया ,और अब बायाँ भी,और तो और क्रिकेट को इनसेट में करके विज्ञापन को चमकाया जाना भी शुरु हो गया,बहुत पुरानी बात नहीं कि जब कोई खिलाङी आऊट होता तो बॉलर की प्रतिक्रिया और जनता का शोर देखने का बङा उत्साह होता था,अब तो गेंदबाज़ के ऊँगली उठाते ही विज्ञापन आ जाता है चाहे भले नॉट आऊट का ही निर्णय हो,और लाचार जनता करे भी तो क्या?
हर गेंद पर विज्ञापन,कुछ साल रुकिये शायद अगले विश्व कप तक सारे चैनल सीधे प्रसारण का भी वर्गीकरण कर दें,

Thursday, February 10, 2011

थोथा चना बाजे घना-1


हिन्दी समाचार चैनल्स हिन्दी दर्शकों का अच्छा मज़ाक बानाते हैं,या तो धारणा यह है कि हिन्दी के दर्शकों को मात्र फि़ज़ूल का ड्रामा पसंद है,या फिर चैनल ही नौटंकी बाजों ने सँभाल रखा है,आज चर्चा का विषय तो कुछ और है किंतु अभी-अभी दस सिर वाला धोनी और हनुमान जी के शरीर पर चढे ग्यारह खिलाङियों के चेहरे टी॰वी॰ पर देखकर हिंदी दर्शकों के मानसिक स्तर के मूल्यांकन का प्रश्न खङा हो गया। 
ख़ैर प्रश्न तो और भी हैं, जैसे क्या विश्व कप चौदह टीमों का स्वस्थ्य और रोमांचक मुका़बला मात्र है या बाज़ार का नया गणित? क्या किस पर हावी है ये तो नहीं कहा जा सकता किंतु सर्वविदित है कि यह भारत का सबसे मुनाफ़े का व्यवसाय है,सिनेमा जगत से भी ज़्यादा, क्योंकि सिनेमा में तो सितारों के और उनके चाहने वालों के ख़ेमे हैं और नफा-नुकसान से दर्शक सर्वथा तटस्थ हैं, किंतु क्रिकेट से भावनाएं जुङी हैं और भावनाओं से जुङा है बाज़ार का गणित,फिर बात बङे प्लाज़्मा में खेल का आनंद लेने की हो या मोबाईल पर मैच देखने की या कोई उत्पाद खरीदने पर सचिन की पारी के निजी दर्शक बनने की,विज्ञापन बनाने वाले कोई कसर नहीं छोङते।

Tuesday, February 8, 2011

बिल्ली की किस्मत से छीका टूटा

"I am not worried at all about the injuries; these are part of the game. I am confident the team will be fully fit when the World Cup starts." K Srikkanth, Chief selector Indian cricket team.
श्रीकांत जी से जब मीडिया लागातार सवाल करती रही तो जनाब झल्ला गये और बोला कि चोट तो खेल का हिस्सा है,टीम बहुत संतुलित है और हम पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं,दस दिन भी नहीं हुए और आ गयी ख़बर प्रवीण कुमार के अनफिट होने की;चलो  श्रीसंत की दर्जन भर ताबीज़ तो काम आ गयीं और बिल्ली की किस्मत से छीका टूट गया। हेमस्ट्रिंग,एल्बो,लिगामेंट टियर,शोल्डर और फिंगर, ये सब मेडिकल टर्म्स आम आदमी भी जानने लगा,क्रिकेट की महिमा ने सबको आधा डॉक्टर तो बना ही दिया,इधर श्रीसंत की निकल पङी और ऊधर ऑस्ट्रेलियन खिलाङी हॉरिट्ज़ और हसी की हँसी गा़यब हो गयी,इंग्लैंड के मॉर्गन और बंग्लादेशी मुर्तज़ा,और भी नाम आयेंगे।अपने मास्टर ब्लास्टर ही आधे शरीर में प्लास्टर लगवा चुके हैं।

Monday, February 7, 2011

खेलोगे,कूदोगे बनोगे नवाब!

 क्रिकेट! आह!! ...भारतीयों के लिये ऐसा शब्द जो भाषा से परे,संवाद से इतर और वर्गवाद,जातिवाद से प्रथक है।चाय के ठेलों और पब्स के प्लाज़्मा दोनों में वही ऊर्जा। बहुत पुरानी कहावत से निकले दो चरित्र, पढ-लिख कर बनने वाले नवाब और खेल-कूद कर होने वाले खराब,नवाब इतना पढ गये कि दवाब में बिगङ गये,नवाब मैदानों से कतराते थे,छुप छुप कर कपिल,गावस्कर,सचिन के किस्सों से मुस्कुराते थे,पर सिर पर नवाब बनने का जुनून था और खेलने वालों के बरबाद हो जाने का मन में सुकून था,ये 3 iditos वाले चतुर कि्स्म के नवाब थे।दो दशक में उग आयी इस generation के मन में बङा गु़स्सा था,नवाबों ने निम्न,उच्च,मध्यम और न जाने कितने वर्ग बना डाले,कटिंग चाय से लेकर बेड टी तक, नैनो से BMW तक,हिस्से,हिस्से,हिस्से।
क्रिकेट बेख़बर रहा,बढता रहा,होनहार लेकिन गै़र नवाबी सचिन की शख्सियत के नीचे,वर्ग टूटते रहे,हिस्से जुङते रहे,खेल मेल का कारण बन गया,दीवारें टूटीं, बुद्धीजीवी और परजीवी एक छत के नीचे,एक ही प्रार्थना करते "विजयी-भव!"  
कहावत बेमानी हो गयी,नवाबी और खराबी का अंतर जाता रहा,खेल जीता पर खिलाङी हार गये,नवाब हो तो बिगङने का हक़ बनता है और बिगङे हो तो नवाबी जाती रहेगी।आसिफ,आमिर,बट्ट but Lays,Pepsi,Aircel से भी डर लगता है,खेल बेचने वालों की तो सज़ा मुक़र्रर हो गयी,कंघी,साबुन,तेल बेचने वाले बकरों की अम्मा कब तक खैर मनायेगी? एक हार और पुतलों पे कालिख़ पुत जायेगी,का़श कि 2003 का शुरुआती मंज़र न फिरसे नज़र आये और इस बार तो नैया उस पार उतर जाये।
चतुर की चटाईः
चतुर ने गूगल किया और क्रिकेट के मैदान के बारे में कुछ "चमत्कारी" बात बताने वाला है, लो भाई इसकी भी सुन लो,
Image Courtesy: Wikipedia

रोमांचक क्षणः
क्रिकेट की लोकप्रियता का रहस्य है उसका रोमांच,अक्सर खेल ऐसा फँसता है कि साँसे अटक जाती हैं,और सालों बाद भी वो मैच याद करके रोमांच हो जाता है, किस्मत के धनी आ‌स्ट्रेलिया और बदकिस्मती की मिसाल दक्षिण अफ्रीका का ये सेमी फाईनल वाकई रोमांच का चरम था।
                                                                   Source: You Tube
'रुपक'