बस कुछ घण्टे और फिर आगा़ज़ हो जायेगा एक और विश्वकप का,अभी-अभी विश्व कप 2003 के फाईनल की झलकियाँ देखीं,दूसरे चैनल मे समांतर में विश्व कप 2007 का वो अतिविस्मरणीय किंतु अविस्मरणीय मैच भी दिखाया जा रहा था जब क्रिकेट की महाशक्ति भारत एक बौने प्रतिद्वंदी बंग्लादेश से हार गयी थी,इस खेल की यही ख़ूबी है रोमांच! भावनाओं का,अनिश्चितता का,उत्साह का,निराशा का,नसों में नशा भरने वाला रोमांच!!! संप्रति से परे भूत और भविष्य मे पनपने वाला रोमांच,भूत जो सालता है,कचोटता है,मुठ्ठियाँ भिंच जाती हैं कि काश!!! ऑस्ट्रेलिया के साथ वो फाईनल,इतना पास पहुँच कर भी इतने दूर रह गये, पराजित सेना से मैदान में उतरे और बिना किसी चमत्कार के विश्व विजेता को नमस्कार कर कप पकङाकर चले आये,उफ्फ,काश...,जब कपिल जी ने जीता होगा वो कप क्या पता रहा होगा कि आने वाले 28 साल तक वही तस्वीरें मन को दिलासा देती रहेंगी,उससे बङे खिलाङी आये,बङी जीत मिलीं लेकिन वो एक कसक कि काश...खैर इसी काश की आस में फिर एक बार उतर रहे हैं मैदान में,फिरसे उम्मींदों का अंबार है,हमेशा कि तरह;फ़र्क इतना है कि इस बार आँकङे भी साथ दे रहे हैं,जीत की आदत के साथ,एक अलग आत्मविश्वास के साथ पादार्पण हो रहा है,फिर वही रोमांच आने वाले क्षणों का और बीत चुके पलों का साथ रह जायेगा ,और संप्रति में होंगी सिर्फ रिमोट कि किट-किट,सर दुखा देने वाले उत्पादों के प्रचार और कभी न सही होने वाले विश्लेषण,विजयी भव की आशा है और काश का भय किंतु फिर भी उम्मीद है कि भविष्य से बँधी और भूत की कर्ज़दार है।