Thursday, February 10, 2011

थोथा चना बाजे घना-1


हिन्दी समाचार चैनल्स हिन्दी दर्शकों का अच्छा मज़ाक बानाते हैं,या तो धारणा यह है कि हिन्दी के दर्शकों को मात्र फि़ज़ूल का ड्रामा पसंद है,या फिर चैनल ही नौटंकी बाजों ने सँभाल रखा है,आज चर्चा का विषय तो कुछ और है किंतु अभी-अभी दस सिर वाला धोनी और हनुमान जी के शरीर पर चढे ग्यारह खिलाङियों के चेहरे टी॰वी॰ पर देखकर हिंदी दर्शकों के मानसिक स्तर के मूल्यांकन का प्रश्न खङा हो गया। 
ख़ैर प्रश्न तो और भी हैं, जैसे क्या विश्व कप चौदह टीमों का स्वस्थ्य और रोमांचक मुका़बला मात्र है या बाज़ार का नया गणित? क्या किस पर हावी है ये तो नहीं कहा जा सकता किंतु सर्वविदित है कि यह भारत का सबसे मुनाफ़े का व्यवसाय है,सिनेमा जगत से भी ज़्यादा, क्योंकि सिनेमा में तो सितारों के और उनके चाहने वालों के ख़ेमे हैं और नफा-नुकसान से दर्शक सर्वथा तटस्थ हैं, किंतु क्रिकेट से भावनाएं जुङी हैं और भावनाओं से जुङा है बाज़ार का गणित,फिर बात बङे प्लाज़्मा में खेल का आनंद लेने की हो या मोबाईल पर मैच देखने की या कोई उत्पाद खरीदने पर सचिन की पारी के निजी दर्शक बनने की,विज्ञापन बनाने वाले कोई कसर नहीं छोङते।

2007  के विश्व कप में भारत और पाकिस्तान के बाहर हो जाने से व्यवसाय का भारी नुकसान हुआ,पता नहीं किस ज्योतिषी की राय पर करोङों रुपया यह मानकर झोंक दिया गया कि भारत विश्वकप पक्का जीत रहा है,शायद ऐसे ही ड्रामेबाज़ हिंदी समाचारों की सलाह पर,भारत बाहर हुआ,जनता का गु़स्सा फूट पङा,विज्ञापन बेमानी हो गये और तो और उत्पाद हमेशा के लिये नकार न दिया जाये ये मानकर विज्ञापन दिखाना ही बंद कर दिया गया,सेट मैक्स ने जान-बूझ कर बङे मैचों के विज्ञापन अधिकार नहीं बेचे कि भारत के सेमीफाईनल में जाने पर तीन गुना दाम वसूल लेंगे लेकिन आनन-फानन में औने-पौने दाम पर भी कोई न मिला।व्यवसाय को भारी नुकसान हुआ,और क्रिकेट के कुबेर पर भारत का प्रभुत्व जग जाहिर हो गया,भले ही खेल में वो ज़ीरो साबित हुये।
पिछले चार सालों में क्रिकेट में अभूतपूर्व परिवर्तन आये,जो भारत Twenty-20 का पुरज़ोर विरोध कर रहा था वही विश्व कप जीत गया,वो भी पाकिस्तान से़!!! रोमांच का चरम,अब तो बस यही खेल था,जब ज़ी समूह के सुभाष चंद्रा ने I.C.L.(Indian Cricket League) बनायी तो BCCI  ने भारी विरोध जताया,कई खिलाङी निलंबित कर दिये गये किंतु अंततः बाज़ार के आगे BCCI ने भी घुटने टिक दिये और इंडियन पैसा लीग मे शामिल हो गये,खेल व्यवसायिक द्रष्टि से भारी सफल रहा और वन डे के अस्तित्व पर बन आयी,क्रिकेट के शुद्ध रूप टेस्ट को कौन पूछने वाला था?व्यवसाय फल-फूल रहा था,प्रीति ज़िंटा और शिल्पा शेट्टी खिलाङियों को क्रिकेट के गुर सिखा रही थीं,जिस मैदान पर कभी सचिन का पसीन गिरा होगा वहाँ चीयर लीडर्स भौंडा न्रत्य कर रही थीं,तो क्या हुआ? व्यवसाय फल-फूल रहा था;
फिर खुलना शुरु हुईं परतें,कहाँ से आ रहा था इतना पैसा ?और किस किस का?स्विस बैंक से दुबई तक सब अमीर हो रहे थे,जाँच तो कुछ हुई नहीं हाँ विश्व कप के ठीक पहले खिलाङियों की नीलामी हो गई,I.P.L. में मूल्य निर्धारण का मापदंड है खिलाङी की रौद्र छवि,भाई छक्का तो छक्का है १ कि॰ मी॰ का हो या सीमा रेखा का,खैर छक्कों में फ़र्क करना बङा मुश्किल हो गया है,जबसे K.K.R. ने छक्कों के आधार पर और सलाह पर मूल्य निर्धारण की परंपरा शुरु की। चार साल! बहुत कुछ बदल गया तब के शेर गांगुली आज अचानक अछूत हो गये।

आज की चर्चा का सार यही है कि बहुत मज़बूत और विश्वकप की प्रबलतम दावेदार भारतीय टीम कोई आश्चर्यजनक परिणाम दे दे तो हार्ट अटैक आने से पहले I.P.L के ड्रामे को अवश्य याद कर लें,क्या पता कोच शाहरूख,शिल्पा और प्रीति ने ही ज़्यादा कुछ सिखा दिया हो?

विज्ञापन के तरीकों और प्रस्तुति में भी भारी बदलाव आया और अगले विश्व कप तक बहुत कुछ बदलने वाला है,इस पर चर्चा अगले अंक में जारी रहेगी...
चतुर की चटाईः
बात विज्ञापन की हो रही है और आज चतुर भाई लाये हैं जानकारी पिछले विश्व कप के आयोजकों के बारे में, 1975 का पहला विश्व कप Prudential Plc. द्वारा प्रायोजित था और इसलिये प्रूडेंशियल कप कहलाया,बाद के विश्व कप ICC द्वारा कराये जाते रहे हालांकि कोई न कोई मुख्य प्रायोजक होता था,भारतीय उपमहाद्वीप मे आयोजित 1987 विश्व कप में अंबानी जी की Reliance प्रायोजक रही और उसके बाद के प्रायोजक LOGO से समझ आ जायेंगे.


यदि आप को लगता है कि क्रिकेट से संबधित नाच गाने वाले अल्बम भारत में ही बनते हैं तो ये देखिये बंग्लादेशी क्रिकेट प्रेमियों का जुनून भी किसी से कम नहीं,वैसे भी अब बंग्लादेश ही पहली और सबसे बङी चुनौती ( 2007 की पनौती) नज़र आ रहा है।




रुपक

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