Saturday, February 12, 2011

थोथा चना बाजे घना-2

(INR)30 crore annual,2 crores monthly,60 lakhs weekly,12 lakh daily,50,000 per hour!! अरे ये किसी कंपनी की वार्षिक आय नहीं है,ये तो सचिन तेंदुलकर की आय के आँकङे हैं,वैसे कुछ और भी चौंकाने वाले आँकङे हैं जैसे गोल्फ खिलाङी टाईगर वुड्स के 13.44 crore/day या फुटबॉल खिलाङी क्रिस्टियानो रोनाल्डो के 65 lakh/day !! सुना है धोनी भी सचिन से बहुत पीछे नहीं रह गये हैं,कोई दो राय नहीं कि इतना मूल्य पाने के लिये खिलाङियों को खा़सा परिश्रम भी करना पङता है,पर फिर भी पैसा पानी की तरह बह रहा है।
पिछले अंक में हम बात कर रहे थे कि किस तरह पिछले विश्व कप से अब तक विज्ञापनों में अभूतपूर्व परिवर्तन आये हैं,सबसे आसान उदाहरण है टेलीविज़न के पर्दे का प्रयोग,याद कीजिये कैसे ऊपर एक कोने में छोटा सा स्कोर दिखायी देता था, फिर आया पर्दे के नीचे के हिस्से में विज्ञापनों का चलन,फिर दाँया भाग गया ,और अब बायाँ भी,और तो और क्रिकेट को इनसेट में करके विज्ञापन को चमकाया जाना भी शुरु हो गया,बहुत पुरानी बात नहीं कि जब कोई खिलाङी आऊट होता तो बॉलर की प्रतिक्रिया और जनता का शोर देखने का बङा उत्साह होता था,अब तो गेंदबाज़ के ऊँगली उठाते ही विज्ञापन आ जाता है चाहे भले नॉट आऊट का ही निर्णय हो,और लाचार जनता करे भी तो क्या?
हर गेंद पर विज्ञापन,कुछ साल रुकिये शायद अगले विश्व कप तक सारे चैनल सीधे प्रसारण का भी वर्गीकरण कर दें,
साधारण पैक जिसमें सिर्फ इनसेट मे स्कोर दिखेगा और बाकि विज्ञापन,मध्यम जिसमें हर ओवर के बाद मुख्य अंश दिखा दिये जायेंगे,प्रीमियम जिसमें मैच दिखेगा और हर गेंद के बाद विज्ञापन,प्लेटिनम जिसमें हर ओवर के बाद विज्ञापन,और यदि खिलाङियों की प्रतिक्रिया वाली क्लिपिंग देखनी हैं तो पिज़्ज़ा के एक्सट्रा चीज़ टॉपिंग की तरह भुगतान करना होगा,फिर क्लिपिंग का भी वर्गीकरण होगा साउंड मिक्सिंग के साथ ज़्यादा दाम चुकाना होगा गाना बजेगा "हुङ दबंग,सबसे बङे लङैया ...." सोचकर ही सर चकरा गया, पर संभव है।
बाज़ारवाद ने खेल और खिलाङी को खिलौना बना दिया है और जनता इस खिलवाङ की मूक साक्षी,जनता को प्रलोभन देने वाले विज्ञापन ताकि उत्पाद बिके,कितने लोग एक रोचक मैच के बीच विज्ञापन का व्यवधान पसंद करते होंगे? शायद कोई नहीं,किंतु Top of the mind recall  के फेर में आँखो में विज्ञापन इतना ठूँस दिया जाता है कि बल्ला पकङे शीतल पेय के कैन ही नज़र आते हैं,खैर खेल में लगा पैसा,सुविधा और गुणवत्ता बढाने में ख़र्च करने का दावा करने वाली कंपनियाँ कुछ  तो कीमत वसूलेंगी ही,और कस्टमर तो है ही वही जिसे कष्ट दे दे कर मार दिया जाये।मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद...
चतुर की चटाईः
चतुर बता रहा है आज "Ambush Marketing" के बारे में,या हिंदी में अनुवाद करने का प्रयास किया जाये तो "आक्रामक बिक्री/विपणन",Ambush Marketing एक प्रकार का समझौता है मुख्य प्रायोजक और जो प्रायोजक नहीं हैं उनके बीच,ज़ाहिर है मुख्य प्रायोजक ICC को एक मोटी रक़म देकर विज्ञापन अधिकार वसूलते हैं और किसी भी प्रतिस्पर्धा से संबद्ध विज्ञापन बनाकर उसका लाभ लेते हैं,उदाहरण के लिये पेप्सी के विज्ञापन जिनमें धोनी हेलीकॉप्टर शॉट लगाते दिखायी दे रहे हैं,अब यदि कोका कोला भी विश्व कप से संबंधित विज्ञापन बना ले तो बिना पैसे दिये वो वही लाभ ले रही है जो पेप्सी ये कहलायेगा Ambush Marketing ,हालांकि ICC के कङे नियम हैं किंतु कंपनियाँ भी चालाक हैं,नियम को तोङना मरोङना संभव है,जैसे विश्वकप का लोगो और थीम उपयोग किये बिना और बिना भारत की जर्सी पहने विज्ञापन कर सकते हैं,ज़ाहिर है बहती गंगा में कौन हाथ नहीं धोना चाहेगा,और जब हर तीसरे विज्ञापन में धोनी है तो हाथ ही नहीं पूरी बॉडी धोनी है,हाँ अगर खेल नहीं पाये तो गंगा मैली होनी है।
Main Sponsors of ICC World Cup 2011
रोमांचक क्षणः
और ये है नब्बे के दशक में प्रचलित हुआ एक विज्ञापन जिसमें भारत के दो सबसे ज़्यादा बिकने वाले सितारे शामिल थे,ज़ाहिर है शाहरूख तब इतने प्रचलित नहीं थे किंतु इस विज्ञापन ने उनकी दशा और दिशा बदल दी,गॉड सचिन की महिमा है।
रुपक

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