Monday, February 7, 2011

खेलोगे,कूदोगे बनोगे नवाब!

 क्रिकेट! आह!! ...भारतीयों के लिये ऐसा शब्द जो भाषा से परे,संवाद से इतर और वर्गवाद,जातिवाद से प्रथक है।चाय के ठेलों और पब्स के प्लाज़्मा दोनों में वही ऊर्जा। बहुत पुरानी कहावत से निकले दो चरित्र, पढ-लिख कर बनने वाले नवाब और खेल-कूद कर होने वाले खराब,नवाब इतना पढ गये कि दवाब में बिगङ गये,नवाब मैदानों से कतराते थे,छुप छुप कर कपिल,गावस्कर,सचिन के किस्सों से मुस्कुराते थे,पर सिर पर नवाब बनने का जुनून था और खेलने वालों के बरबाद हो जाने का मन में सुकून था,ये 3 iditos वाले चतुर कि्स्म के नवाब थे।दो दशक में उग आयी इस generation के मन में बङा गु़स्सा था,नवाबों ने निम्न,उच्च,मध्यम और न जाने कितने वर्ग बना डाले,कटिंग चाय से लेकर बेड टी तक, नैनो से BMW तक,हिस्से,हिस्से,हिस्से।
क्रिकेट बेख़बर रहा,बढता रहा,होनहार लेकिन गै़र नवाबी सचिन की शख्सियत के नीचे,वर्ग टूटते रहे,हिस्से जुङते रहे,खेल मेल का कारण बन गया,दीवारें टूटीं, बुद्धीजीवी और परजीवी एक छत के नीचे,एक ही प्रार्थना करते "विजयी-भव!"  
कहावत बेमानी हो गयी,नवाबी और खराबी का अंतर जाता रहा,खेल जीता पर खिलाङी हार गये,नवाब हो तो बिगङने का हक़ बनता है और बिगङे हो तो नवाबी जाती रहेगी।आसिफ,आमिर,बट्ट but Lays,Pepsi,Aircel से भी डर लगता है,खेल बेचने वालों की तो सज़ा मुक़र्रर हो गयी,कंघी,साबुन,तेल बेचने वाले बकरों की अम्मा कब तक खैर मनायेगी? एक हार और पुतलों पे कालिख़ पुत जायेगी,का़श कि 2003 का शुरुआती मंज़र न फिरसे नज़र आये और इस बार तो नैया उस पार उतर जाये।
चतुर की चटाईः
चतुर ने गूगल किया और क्रिकेट के मैदान के बारे में कुछ "चमत्कारी" बात बताने वाला है, लो भाई इसकी भी सुन लो,
Image Courtesy: Wikipedia

रोमांचक क्षणः
क्रिकेट की लोकप्रियता का रहस्य है उसका रोमांच,अक्सर खेल ऐसा फँसता है कि साँसे अटक जाती हैं,और सालों बाद भी वो मैच याद करके रोमांच हो जाता है, किस्मत के धनी आ‌स्ट्रेलिया और बदकिस्मती की मिसाल दक्षिण अफ्रीका का ये सेमी फाईनल वाकई रोमांच का चरम था।
                                                                   Source: You Tube
'रुपक'

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