Saturday, February 19, 2011

दही-शक्कर

बस कुछ घण्टे और फिर आगा़ज़ हो जायेगा एक और विश्वकप का,अभी-अभी विश्व कप 2003 के फाईनल की झलकियाँ देखीं,दूसरे चैनल मे समांतर में विश्व कप 2007 का वो अतिविस्मरणीय किंतु अविस्मरणीय मैच भी दिखाया जा रहा था जब क्रिकेट की महाशक्ति भारत एक बौने प्रतिद्वंदी बंग्लादेश से हार गयी थी,इस खेल की यही ख़ूबी है रोमांच! भावनाओं का,अनिश्चितता का,उत्साह का,निराशा का,नसों में नशा भरने वाला रोमांच!!! संप्रति से परे भूत और भविष्य मे पनपने वाला रोमांच,भूत जो सालता है,कचोटता है,मुठ्ठियाँ भिंच जाती हैं कि काश!!! ऑस्ट्रेलिया के साथ वो फाईनल,इतना पास पहुँच कर भी इतने दूर रह गये, पराजित सेना से मैदान में उतरे और बिना किसी चमत्कार के विश्व विजेता को नमस्कार कर कप पकङाकर चले आये,उफ्फ,काश...,जब कपिल जी ने जीता होगा वो कप क्या पता रहा होगा कि आने वाले 28 साल तक वही तस्वीरें मन को दिलासा देती रहेंगी,उससे बङे खिलाङी आये,बङी जीत मिलीं लेकिन वो एक कसक कि काश...खैर इसी काश की आस में फिर एक बार उतर रहे हैं मैदान में,फिरसे उम्मींदों का अंबार है,हमेशा कि तरह;फ़र्क इतना है कि इस बार आँकङे भी साथ दे रहे हैं,जीत की आदत के साथ,एक अलग आत्मविश्वास के साथ पादार्पण हो रहा है,फिर वही रोमांच आने वाले क्षणों का और बीत चुके पलों का साथ रह जायेगा ,और संप्रति में होंगी सिर्फ रिमोट कि किट-किट,सर दुखा देने वाले उत्पादों के प्रचार और कभी न सही होने वाले विश्लेषण,विजयी भव की आशा है और काश का भय किंतु फिर भी उम्मीद है कि भविष्य से बँधी और भूत की कर्ज़दार है।
स्मरण हो रहा है परीक्षा के पहले का वो समय जब पेट में तितलियाँ उङा करती थीं,सारी तैयारी होने पर भी ह्रदय गति 140 / 120 रहा करती,हाथ पाँव ठण्डे और फिर एक गहरी साँस कि "सोचना क्या जो भी होगा देखा जायेगा",तैयारी से टोटके तक सब जारी हैं,आलोचना का दही और शिरोधार्यता की शक्कर का स्वाद खिलाङियों के भी मन में होगा,किंतु वो भी जब खेलेंगे तो यही कहेंगे 'सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा'।
चतुर की चटाईः
करोङों दर्शकों की प्रार्थना,विश्वास और आशा का बोझ लिए मैदान में उतरना अवश्य ही बहुत दवाब का काम है,और बहुधा किस्मत का बहुत बङा हाथ होता है,जैसे कोई बङा कैच छूट जाए या ऐन मौके पर बङा विकेट मिल जाए तो खेल का नक्शा ही पलट जाता है,खिलाङी भी भाग्य को मानते हैं और कुछ न कुछ टोटके करते हैं,देखिये चतुर ले आया है ऐसी ही कुछ जानकारीः
  • प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ महेला जयवर्धने चौका मारने के बाद अपने बल्ले को चूमते और बल्ले के दूसरे छोर को थपथपाते दिख जायेंगे।
  • क्रिकेट के भगवान सचिन और उनके सबसे बङे प्रशंसक सुनील गावस्कर दोनों ही पहले बाँये पैर का जूता,पैड और दस्ताने पहनते हैं,
  • सचिन हमेशा अपने भाई का दिया हुआ पैड पहनते हैं,फिर चाहे थोङे समय के लिये ही क्यों न पहनें,
  • अधिकतर सचिन आऊट होने के बाद भी मैच के अंत तक सारे गियर्स पहनकर ही बैठे रहते हैं
  • सहवाग का मानना है कि वो जिस टीम को सपोर्ट करते हैं वो हार जाती है और आश्चर्यजनक रुप से वो अंत तक विरोधी टीम के जीतने की आशा करते रहते हैं
  • महान ऑस्ट्रेलियाई खिलाङी स्टीव वॉ हमेशा अपनी जेब में अपने दादा का दिया हुआ लाल रुमाल रखते थे,जिमी अमरनाथ और सहवाग की जेब में भी लाल रुमाल देखा गया है।
  • श्रीसंत के गले मे दर्ज़न भर ताबीज़ें आपने देखी ही होंगी और बॉलिंग का रन अप लेते समय कनपटी में बार-बार ऊँगली से दवाब डालना और खुद से बात करना ये सब श्रीसंत को एक मज़ेदार खिलाङी बना देते हैं
  • पता नही ये आदत है या टोटका किंतु भारतीय कप्तान धोनी हमेशा स्ट्राइक लेने से पहले अँगूठे से अपनी नाक को ऊपर की ओर दबाते और ग्लव्स ठीक करते दिख जायेंगे।
  • वेस्टइंडीज़ के खिलाङी चंद्रपॉल हेल्मेट उतारते,विकेट की बेल्स से पिच पर ठोंकाठाकी करते दिख जायेंगे।
  • Ponting के डेप्यूटी माईकल क्लार्क मैदान पर जाने से पहले तेज़ म्यूज़िक सुनने के शौकीन हैं।

भारतीय टीम के नये खिलाङी भी कम नहीं हैं
  • आर अश्विन हमेशा अपना लकी लैपटॉप साथ रखते हैं
  • विस्फोटक बल्लेबाज़ यूसुफ पठान अंधविश्वास को तो नहीं मानते किंतु खु़दा को याद करना और मैच से पहले जो भी तीव्र इच्छा हो उसे पूरा करने का प्रयास करते हैं जैसे कुछ खाना या कोई गाना सुनना।
  • पीयूष चावला मैदान पर जाते समय हमेशा अपना दाँया पैर पहले रखते हैं,उनके पिता ने ऐसा निद्रेश दिया है।
ऐसे ही कई और टोटके हैं, आपका भी कोई प्रिय टोटका होगा ,जैसे क्रिकेट देखते समय बाथरुम गया तो विकेट गया,या नीली शर्ट पहनी तो मैच जीते,जो भी हो आज़माने से बाज़ न आयें,टोटका ऐसा जिससे स्वयम का और किसी और का नुकसान न हो ,हाँ टोटके और अंधविश्वास मे अंतर बना रहे और खेल जीवन का हिस्सा हो, जीवन खेल का हिस्सा न बन जाये।
रोमांचक झलकियाँ:
रुपक

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